Friday, January 7, 2011

प्रवासी पक्षियों को सर्दियों में भी भा रहा भोपाल

अनिल गुलाटी, भोपाल, 6 जनवरी, 2011

यूं तो मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या में पहले की अपेक्षा काफी कमी आई है लेकिन उनकी आमद अब भी बरकरार है। सर्दियों के दिनों में इन सुंदर परिंदों को यहां की बड़ी झील पर डेरा डाले देखा जा सकता है और उनके कलरव की मधुर ध्वनि सुनी जा सकती है।

नए साल की पूर्व संध्या पर ब्लैक हेडेड गुल पक्षियों की जोड़ियों को बड़ी झील के बीचोबीच अठखेलियां करते देखा गया। ये पक्षी हर साल बड़ी झील पर आते हैं। उत्तरी व उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों से आने वाले प्रवासी पक्षी सर्दी के दिनों में मध्य भारत के भोपाल में इकट्ठे होते हैं। वैसे पिछले दो सालों की तुलना में इस साल यहां कम पक्षी आए हैं। सर्दियों के दिनों में भोपाल और इसके आसपास के इलाकों में प्रवासी पक्षियों की संख्या बढ़ जाती है।

प्रख्यात पक्षी विज्ञानी डॉ. सलीम अली ने अपनी किताब 'द बुक ऑन इंडियन बर्ड्स' में लिखा है कि हर साल सितम्बर और नवंबर के बीच या सर्दियों के दिनों में अचानक ही पक्षियों की संख्या बढ़ जाती है। उन्हें ऐसे स्थानों पर भी देखा जाता है जहां लोगों ने पहले एक भी पक्षी को नहीं देखा होता।

भोपाल और मध्य प्रदेश के मामले में भी ऐसा ही है। यहां सर्दियों के दिनों में अचानक ही सनबर्ड्स, मिनिवेट्स, फ्लाई कैचर, पिट्टा, मूरहेन्स, वैगटेल्स, बैबलर्स जैसे पक्षियों की सक्रियता बढ़ जाती है। मध्य प्रदेश में हरियाली और जल स्रोत संग्रहों की वजह से ये पक्षी यहां ज्यादा देखे जाते हैं।

भोपाल में वनविहार, कलियासोत, शाहपुरा झील, भदभदा और केरवा बांध पर प्रवासी पक्षियों का आमद ज्यादा होती है। वैसे कलियासोत क्षेत्र में निर्माण कार्य बढ़ने के चलते वहां हरियाली तेजी से कम हुई है और जल संग्रह भी कम हुए हैं। इससे वहां पहुंचने वाले स्थानीय व विदेशी प्रवासी पक्षियों की संख्या में कमी आई है।

शाहपुरा झील में घरेलू अपशिष्ट पदार्थो के प्रवाह के कारण वहां पक्षियों का आना प्रभावित हुआ है। इसी तरह वनविहार में पक्षी प्रेमियों की मौजूदगी पक्षियों को पसंद नहीं आती लेकिन यहां की हरियाली और जल के भंडार उन्हें आकर्षित भी करते हैं।

भोपाल में इस साल ब्लैक रेड स्टार्ट, लार्ज कोरमोरेंट्स (शिकारी पक्षी), स्पॉट बिल्ड डक्स (एक प्रकार की बत्तख), स्मॉल ब्लू किंगफिशर, रडी शेलडक, लेसर व्हिस्लिंग टील्स, रिवर टर्न, पेंटेड स्टॉर्क और ब्लैक हेडेड गुल्स जैसे प्रवासी पक्षी आए हैं।

भोपाल में डेढ़ महीने चली फूलों की प्रदर्शनी

अनिल गुलाटी, भोपाल, 6 जनवरी (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का पिछला डेढ़ महीना फूलों की प्रदर्शनी का रहा। मध्य नवंबर से लेकर नए साल की शुरुआत तक यहां बोंसाई, गुलदाऊदी और गुलाब की प्रदर्शनी ने लोगों को हरियाली से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। लोगों ने यह महसूस किया कि शहर में हरियाली बढ़ाने में फूलों का अहम योगदान है।

यूं तो भोपाल में हर साल शीत ऋतु में फूलों की प्रदर्शनी लगाई जाती है, लेकिन इस बार 15 साल बाद गुलदाऊदी की प्रदर्शनी लगाई गई थी। कंक्रीट के जंगल में बदलते भोपाल जैसे शहर के लिए फूलों की प्रदर्शनी अच्छी बात है, क्योंकि यहां हरियाली तेजी से घटती जा रही है। विशेषज्ञ हालांकि इतने से संतुष्ट नहीं हैं, उनका मानना है कि यह तो उद्यान में लगाए जाने वाले पौधे हैं, यहां वस्तुत: प्राकृतिक पेड़-पौधों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

प्रदर्शनी का मौसम यहां 13-14 नवम्बर 2010 को बोंसाई प्रदर्शनी के साथ शुरू हुआ। भोपाल के लिंक रोड गार्डन में लगाई गई यह प्रदर्शनी भोपाल के बोंसाई क्लब द्वारा आयोजित की गई थी। यह भोपाल की 15वीं बोंसाई प्रदर्शनी थी।

प्रदर्शनी में सेकी बोंसाई, छोटा जंगल, आदि बोंसाई के विभिन्न रूपों को शामिल किया गया। बोंसाई का अर्थ होता है गमले में पेड़। इसमें पेड़ के पौधे को गमले में लगाकर लगातार उसकी टहनियों और जड़ों को काट-छांट कर छोटा रखा जाता है और बड़े पेड़ का छोटा प्रतिरूप तैयार किया जाता है। बोंसाई प्रदर्शनी के कारण भोपाल में बोंसाई का चलन जोड़ पकड़ता जा रहा है।

इसके बाद 4-5 दिसंबर 2010 को इसी वाटिका में गुलदाऊदी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इसमें बागवानी विभाग, अरेरा क्लब, आईआईएफएम, एडीएचपीजी भोपाल, प्रेरणा प्रकाश, आदि संस्थाओं का भी सहयोग मिला। गुलदाऊदी प्रदर्शनी यहां 15 साल बाद फिर से आयोजित की गई। इसमें गुलदाऊदी की विभिन्न किस्मों को शामिल किया गया।

गुलदाऊदी प्रदर्शनी के अयोजन से इस फूल के प्रति आम लोगों में जानकारी बढ़ाने की कोशिश की जाती है। प्रदर्शनी में शामिल गुलदाऊदी की जिन किस्मों ने लोगों का ध्यान सबसे अधिक खींचा उसमें क्वि ल, कास्केड, ब्रशेज और थिस्ट्ल और पोंपन थे। ये किस्म हरे, सफेद, नारंगी रंगों में उपलब्ध थे। प्रदर्शनी में स्पाइडर और कोरियन किस्मों को भी शामिल किया गया था।

इसके बाद नए साल की शुरुआत यानी पहली जनवरी को भोपाल की सर्वाधिक लोकप्रिय गुलाब प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इसमें गुलाब की 100 से अधिक किस्मों के करीब 2,000 गमलों को शामिल किया गया। गुलाब प्रदर्शनी का आयोजन एम. पी. रोज सोसाइटी की ओर से किया गया। इसमें शामिल करने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से गुलाब भेजे गए।

यह भोपाल की 30वीं गुलाब प्रदर्शनी थी। इस बार गुलाब की विभिन्न किस्मों एचटी, पोलिएंथा, मिनिएचर और फ्लोरिबुंडा में प्रतियोगिता आयोजित की गई।

प्रदर्शनी में भोपाल के निवासियों के अलावा गुलाब और गुलदाऊदी प्रदर्शनियों में भोपाल की मधुमक्खी भी इस खूबसूरत और सुगंधित प्रदर्शनी में खुद को शामिल होने से रोक नहीं पाए।

Sunday, January 2, 2011

शब्दों से अधिक शरीर की भाषा स्पष्ट होती है

 हममें से हर कोई अपनी भावना या विचार का इजहार करने के लिए किसी न किसी तरीके का इस्तेमाल करता है। यह आवश्यक नहीं है कि संवाद कायम करने के लिए हमेशा जुबान से बोले जाने वाले शब्दों का ही इस्तेमाल किया जाए। कभी-कभी शरीर की भाषा जुबान से अधिक स्पष्ट और ताकतवर होती है।

कई बार वक्ता अपनी बातों के साथ कई तरह की भाव-भंगिमाओं का इस्तेमाल करते हैं। यह वक्ता द्वारा बोली जाने वाली बातों को सकारात्मक या नकारात्मक तरीके से मदद करता है। इतना ही नहीं यह वक्ता के बारे में उन बातों को भी बताता है, जो वक्ता कहना नहीं चाहता है। मसलन उसकी सोच और विचार के बारे में जाने-अनजाने कई राज उगल देती हैं हमारी भाव-भंगिमाएं।

कई बार हम वाक्य को अधूरा छोड़कर उसे भाव भंगिमाओं या शरीर की भाषा के माध्यम से पूरा करते हैं, क्योंकि कई बार कुछ बातें बोलने में असुविधाजनक होती है। कई बार हम जुबान से बोले जाने वाले एक साधारण से वाक्य या शब्द को शारीरिक हाव-भाव से एक विशेष अर्थ भी देते हैं।

इसलिए शारीरिक हाव-भाव जैसे चेहरे की भंगिमा, हाथों का इशारा, देखने का तरीका या शारीरिक मुद्रा, आदि का संवाद में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। याद कीजिए कई बार हम सिर्फ मुस्कराकर, ऊंगली दिखाकर, हाथों से इशारा कर कितना कुछ कह जाते हैं।

हम अपनी मुद्राओं के माध्यम से हालांकि कुछ न कुछ तो कहते ही रहते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि हमारी मुद्राओं को देखने वाला व्यक्ति भी हमारी मुद्राओं के वही अर्थ समझे, जो हम वाकई कहना चाहते हैं। क्योंकि एक ही मुद्रा का अर्थ अलग-अलग समाज और संस्कृति में अलग लगाया जा सकता है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि हमारी मुद्राएं हमारे बारे में इतना कुछ कहती हैं कि कई बार हम यह महसूस भी नहीं कर सकते हैं। एक ही शब्द अलग-अलग भंगिमा के साथ कहे जाने पर कभी गंभीर तो कभी अपमानजनक तौर पर ली जा सकती है।

संप्रेषण विज्ञान पर काम करने वाले शोधार्थियों का मानना है कि हम जो कुछ भी कहते हैं उसके साथ यदि सही शारीरिक भाषा को भी जोड़ दिया जाए, तो हम उसके अर्थ का अधिक-से-अधिक सटीक संप्रेषण करने में सफल हो सकते हैं।

यहां कुछ शारीरिक भंगिमाओं और मुद्राओं और उनके अर्थ की एक सूची दी जा रही है, लेकिन अलग-अलग परिस्थितियों में इसके अर्थ बदल भी सकते हैं।

मुद्राएं (अर्थ)-

- आगे की ओर पसरा हुआ हाथ (याचना करना)
- मुखाकृति बनाना (धीरज की कमी या अधीर)
- कंधे घुमाना फिराना या उचकाना (विदा होना, अनभिज्ञता जाहिर करना)
- मेज पर उंगलियों से बजाना (बेचैनी)
- मुट्ठी भींचना और थरथराना (गुस्सा)
- आगे की ओर उठी और सामने दिखती हथेली (रूकिए और इंतजार कीजिए)
- अंगूठा ऊपर उठा हुआ (सफलता)
- अंगूठा गिरा हुआ (नुकसान)
- मुट्ठी बंद करना (डर)
- आंख मींचना (ऊबना)
- हाथ से किसी एक दिशा की ओर इशारा करना (जाने के लिए कहना)
- तेज ताली बजाना (स्वीकृति)
- धीरे से ताली बजाना (अस्वीकार, नापसंदगी)

आज के जमाने में जब हर आदमी के पास समय बहुत कम होता है, ये मुद्राएं संवाद में बहुत काम आ सकती हैं और संप्रेषण में बहुत कारगर हो सकती हैं। भाषण, प्रस्तुति आदि में इन मुद्राओं का इस्तेमाल कर हम किसी खास विचार, भाव का आसानी से संप्रेषण कर सकते हैं या आसानी से अपने पक्ष में माहौल बना सकते हैं।
- अनिल गुलाटी

मोबाइल फोन के बिना जिंदगी में अधूरापन

- अनिल गुलाटी,  भोपाल !  हमारी जिंदगी में मोबाइल फोन का महत्वपूर्ण स्थान है। आज के दौर में मोबाइल के बिना जिंदगी की कल्पना करने पर शायद हम असहज महसूस करने लगेंगे। बाजार में आईफोन आने के बाद मीडिया में, वेबसाइटों पर और ब्लॉग्स पर इसकी खूब चर्चा हुई। आईफोन की कीमत काफी यादा है इसलिए भारत में इसके उपभोक्ता कम हैं लेकिन आम मोबाइल फोन की बात करें तो शायद अहसास होगा कि फोन के बिना जिंदगी में अधूरापन सा है।

भले ही मोबाइल फोन हमारी जिंदगी का हिस्सा हो लेकिन कई बार यह परेशानी का सबब बन जाता है। मसलन आप काम में व्यस्त हों और फोन बजने लगे। खैर इसका भी समाधान है कि आप मोबाइल को शांत अवस्था (साइलेंट) में कर लें। इसके अलावा कई सेवा प्रदाता ऐसी सुविधा भी उपलब्ध करा रहे हैं कि अगर फोन बंद हो तो भी आने वाली कॉल के बारे में पता चल जाएगा। फोन ऑन करते ही पता चल जाएगा कि इस दौरान कितनी कॉल्स आईं। ये सभी छूटी हुई कॉल (मिस कॉल) के तहत दर्ज हो जाएंगी। एक तरीका यह भी है कि आप मोबाइल से बैट्री को अलग कर दें। ऐसी स्थिति में आपका फोन पहुंच से बाहर हो जाएगा और कोई यह शिकायत भी नहीं कर पाएगा कि आपने फोन बंद कर लिया था। मौजूदा समय में भारत में करीब 60 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता हैं, जिसमें 30 फीसदी ग्रामीण इलाकों में हैं। अनुमान है कि 2012 तक भारतीय मोबाइल फोन का बाजार दोगुना हो जाएगा।

दरअसल, कंपनियां नई रणनीति, नए तरह के फोन, नई सेवाओं के साथ बाजार में उत्पादों को उतार रही हैं। भारतीय बाजार में कंपनियां चीन के सस्ते मोबाइल फोन से मुकाबला करने के लिए सस्ते फोन बाजार में उतार रही हैं। भारत में चीनी मोबाइल की बिी पर पाबंदी है। इसके बावजूद ये फोन खुलेआम बिक रहे हैं। फोन के माध्यम से हम लोगों से, अपने परिवार से, अपने कार्यालय से और दोस्तों से संपर्क में रहते हैं। उन्हें संक्षिप्त संदेश सेवा (एसएमएस) भेजते हैं। फोन के माध्यम से लाखों लोग आपातकाल में एंबुलेंस की मदद प्राप्त कर लेते हैं। मोबाइल के और भी कई अन्य उपयोग हैं। मसलन योतिष, समाचार, खेल, शेरो-शायरी जैसी सामग्री को डाउनलोड किया जा सकता है। मोबाइल में कैमरा हो तो कहीं भी और कभी की भी तस्वीर ली जा सकती है। रिकॉर्डिग की सुविधा मोबाइल को बेहद खास बनाती है। अब आईफोन में तो इंटरनेट की भी सुविधा है। ग्रामीण भारत में मोबाइल फोन का प्रसार बहुत तेजी से हुआ है लेकिन यहां बिजली की आपूर्ति की दिक्कत है। इसलिए यहां बैट्री को चार्ज करना एक बड़ी चुनौती है। ग्रामीण इलाकों में अकसर ऐसी कहानियां सुनने को मिलती हैं कि लोग अपने मोबाइल की बैट्री को चार्ज करने के लिए 20-20 किलोमीटर दूर तक जाते हैं लेकिन यहां भी जुगाड़ काम कर गया है।

बैट्री से जुड़े एक विशेष केबल के माध्यम से मोबाइल को चार्ज कर लिया जाता है। पिछले दिनों मीडिया में खबरें आईं कि किसानों, खुदरा व्यापारियों और वितरण केंद्रों को मोबाइल के माध्यम से जोड़ा जाए ताकि किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिल सके। साथ ही वह समय से अपने फसलों को बेच सकें।

मोबाइल फोन को टीवी रिमोट की तरह प्रयोग किया जाता है। अगर आपके फोन में इंफ्रारेड पोर्ट है तो कुछ सॉफ्टवेयर की मदद से मोबाइल को टीवी रिमोट के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। ऐसे सॉफ्टवेयर भारत में आसानी से उपलब्ध हैं।

मोबाइल फोन ने अलार्म घड़ी और हाथ वाली घड़ियों के व्यापार को काफी प्रभावित किया है। मोबाइल से न सिर्फ आप समय देख सकते हैं बल्कि अलार्म लगा सकते हैं। अपने जरूरी काम के लिए या किसी से मिलने का समय भी सेट कर सकते हैं। निश्चित समय पर मोबाइल आपके काम की याद दिला देगा।

छोटे बच्चों के लिए तो यह एक खिलौने का भी काम करता है। इसके अलावा मोबाइल में मौजूद टार्च भी लोगों के लिए बड़े काम का है।

मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि जिन इलाकों में सरकार विभिन्न योजनाओं के तहत धन उपलब्ध कराती है वहां मोबाइल फोन की बिी बढ़ जाती है। यहां तक कि आपदा राहत के लिए जिन इलाकों में सरकार ने लोगों को धन मुहैया कराया वहां भी मोबाइल की बिी में तेजी देखने को मिली। जाहिर है मोबाइल हमारे लिए आवश्यक बन गया है।

Saturday, January 1, 2011

प्रकृति की अमूल्य रचना है पक्षी

(विश्व प्रवासी पक्षी दिवस पर विशेष) - अनिल गुलाटी

पूरे विश्व में पिछले 30 सालों में पक्षियों की 21 प्रजातियां लुप्त हो गई, जबकि पहले औसतन सौ साल में एक प्रजाति लुप्त होती थी।यह आंकड़ा भले ही हमें आश्चर्य में डाल दें, पर यह सच है। यदि हम जल्द ही इन्हें बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाते हैं, तो हम प्रकृति की इस अमूल्य रचना को खो देंगे।पक्षियों की, खासतौर से प्रवासी पक्षियों की, हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रवासी पक्षी अपनी लंबी यात्रा से विभिन्न संस्कृतियों और परिवेशों को जोड़ने का काम करते हैं। उन्हें किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता। अपनी लंबी यात्रा में वे प्रत्येक साल पहाड़, समुद्र, रेगिस्तान बहादुरी से पार कर एक देश से दूसरे देश का सफर करते हैं। इस सफर में उन्हें तूफानन, बारिश एवं कड़ी धूप का भी सामना करना पड़ता है।

प्रवासी पक्षियों की दुनिया भी अद्भुत है, सबकी अपनी-अपनी विशेषता है। पक्षियों की ज्ञात प्रजातियों में 19 फीसदी पक्षी नियमित रूप से प्रवास करते हैं, इनके प्रवास के समय और स्थान भी अनुमानित होते हैं। प्रवासी पक्षी हमारी दुनिया की जैव विविधता के हिस्सा हैं और कई बार उनके आचार-विचार से हमें यह पता लगाने में आसानी होती है कि प्रकृति में संतुलन है या नहीं।पक्षियों से जैव विविधता को बनाये रखने में मदद मिलती है और इस वजह से हमें दवाइयां, ईंधन, खाद्य पदार्थ, आदि महत्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलती है। इनमें कुछ ऐसी जरूरतें भी है, जिनके बिना हम अपने जीवन के बारे में सोच नहीं सकते। ऐसी स्थिति में हमें इनके संरक्षण और जैव विविधता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने ही चाहिएं।

प्रवासी पक्षियों की इस महत्ता को देखते हुए 2006 से विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाये जाते का निर्णय लिया गया। इसके तहत प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के लिए अपनाये जाने वाले जरूरी उपायों को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जाता है, साथ ही इनके प्रवास को सहज बनाए रखने के उपाय किए जाते हैं। यह दिवस मई के दूसरे शनिवार को मनाया जाता है। 2010 में इस साल इसे 8 मई को पूरी दुनिया मनाया गया । इस दिन पक्षी प्रेमी शैक्षणिक कार्यक्रम, बर्ड वाचिंग, उत्सव आदि आयोजन करके पक्षियों को बचाने की मुहिम चलाते हैं।हर साल इस दिवस के लिए एक विषय तय किया जाता है। इस बार प्रवासी पक्षियों को संकट से बचाएं-सभी प्रजातियों की गणना करें विषय रखा गया है। इसका मुख्य उद्देश्य है- अति गंभीर स्थिति में खत्म होने के कगार पर खड़ी प्रजातियों को केन्द्र में रखते हुए विश्व स्तर पर संकटग्रस्त प्रवासी पक्षियों को बचाने के लिए जागरूकता पैदा करना।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2010 को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष घोषित किया गया। इसे ध्यान में रखते हुए विश्व प्रवासी पक्षी दिवस पर यह जोर दिया गया कि किस तरह से प्रवासी पक्षी हमारी जैव विविधता के हिस्सा हैं और किस तरह से पक्षी की एक प्रजाति के संकट में पड़ने से कई प्रजातियों के लिए संकट खड़ा हो जाता है । अंतत: यह पृथ्वी के पूरे जीव जगत के लिए खतरा बन सकता है। जैव विविधता किसी भी प्रकार के जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। इस तरह के दिवस या वर्ष सिर्फ उत्सव के लिए नहीं होते, बल्कि इसे पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता को बचाने के लिए निमंत्रण के रूप में लेना चाहिए। पृथ्वी पर जीवन उसकी जैव विविधता के कारण ही है। इसमें असंतुलन सभी प्रजातियों के लिए संकट का कारण हो सकता है। जीवन की उत्पत्ति में लाखों साल लगे हैं और इसी के साथ जैव विविधता की अद्भुत दुनिया का विकास भी हुआ है।

यह विविधता सभी प्रजातियों को एक-दूसरे पर आश्रित रहने का प्रमाण है। यह सभी जैविक इकाइयों को उसकी जरूरतें पूरा करती है और मनुष्य के लिए भी यह भोजन, दवाइयां, ईंधन एवं अन्य जरूरतें उपलब्ध कराती है। पर अफसोस की बात है कि मनुष्य की गतिविधियों के कारण पक्षियों की कई प्रजातियां खत्म हो गई और कई खात्मे की कगार पर है। यह ऐसा नुकसान है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती और अंतत: जीविकोपार्जन पर संकट पैदा करते हुए जीवन को संकट में डाल देगा।विलुप्ति की वर्तमान दर प्राकृतिक विलुप्ति दर से हजार गुना ज्यादा है।

कहां सौ साल में पक्षी की एक प्रजाति लुप्त होती थी और कहां अब पिछले 30 साल में 21 प्रजातियां लुप्त हो गई हैं।वैश्विक स्तर पर 192 पक्षी प्रजातियों को अति संकटग्रस्त श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। यह पर्यवास का खत्म होना, शिकार, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, मनुष्यों द्वारा बाधा उत्पन्न करना आदि कारकों का परिणाम है, पर यह सभी किसी न किसी तरह से मनुष्यों के कारण ही है।यदि तत्काल कोई कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो कुछ सालों बाद हम इन संकटग्रस्त पक्षियों को खो देंगे।

इन संकटग्रस्त प्रवासी पक्षियों को बचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम यह होगा कि हमें इनके प्राकृतिक पर्यवास को बचाने के साथ-साथ नए पर्यवास विकसित करने होंगे। हमें यह विचार करना चाहिए कि किस तरह से ये अपने जीवन संरक्षण के लिए राजनीतिक, संस्कृतिक एवं भौगोलिक सीमाओं को लांघते हुए एक सुरक्षित रहवास के लिए हजारों किलोमीटर की कठिन सफर को पूरा करते हैं और यदि उन्हें प्रवास के लिए सुरक्षित स्थान नहीं मिलेगा तो क्या होगा? यह जरूरी है कि उनके पर्यवास के पास पर्याप्त सुरक्षा भी हो ताकि उनका शिकार न किया जा सके। भोपाल की झीलें हो या फिर इन्दौर की झीलें या अन्य छोटे-बड़े नम क्षेत्र, हमें उनके प्राकृतिक स्वरूप के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।निश्चय ही ऐसा करके हम न केवल पक्षियों का संरक्षण करेंगे बल्कि जैव विविधता को बचाते हुए अपनी भावी पीढ़ी के जीवन को ही बचाने का काम करेंगे।

- इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

लोकरंग उत्सव में कठपुतलियां बनी आकर्षण का केंद्र

- अनिल गुलाटी
भोपाल, 29 जनवरी (आईएएनएस)। भोपाल के लोकरंग महोत्सव में इंडोनेशियाई कठपुतलियां दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। यहां पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु जैसे राज्यों के अलावा इंडोनेशिया, तुर्की और विएतनाम जैसे देशों की भी कठपुतलियां आई हैं। यहां आपको कठपुतलियों के कई प्रकार देखने को मिलेंगे मसलन स्ट्रिंग, रॉड, वॉटर, शैडो कठपुतलियां लेकिन इनमें इंडोनेशिया की छड़ीनुमा कठपुतलियां लोगों को खूब भा रही हैं।

भोपाल में पांच दिवसीय यह लोकरंग महोत्सव प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है। इस महोत्सव में देश की सांस्कृतिक व पारंपरिक विरासत को प्रदर्शित किया जाता है। महोत्सव 26 जनवरी से शुरू हुआ है। इस आयोजन का यह 25वां साल है। इसमें न केवल देश की सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन किया जाता है, बल्कि हर साल आयोजन का कोई एक विषय भी होता है। इस वर्ष का विषय कठपुतली रखा गया है।

समारोह में तरह-तरह की कठपुतलियों को देखा जा सकता है। इनमें दस्ताने के आकार से लेकर छड़ी के आकार तक की कठपुतलियों को प्रदर्शित किया गया है। यही नहीं परछाई के जरिए भी कठपुतलियों का प्रदर्शन इस समारोह में किया जा रहा है।

फोटो कैप्शन : 1. इंडोनेशिया की रॉड पपेट। 2. वियतनाम का वॉटर पपेट। (सभी फोटो : अनिल गुलाटी।)

ब्लॉग पर देखिए दुर्गा पूजा की चहल-पहल

- अनिल गुलाटी

कोलकाता।
यदि आप भक्ति के रंग में डूबे कोलकाता की प्रसिद्ध दुर्गापूजा का घर बैठे आनंद उठाना चाहते हैं तो ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। कोलकाता के लोग इन दिनों पूजा पंडालों के अपने अनुभवों को ब्लॉग के जरिए पाठकों तक पहुंचा रहे हैं।

कोलकाता के विभिन्न पंडालों में उत्सव के माहौल से लेकर वैसे अड्डों का जिक्र ब्लॉग पर किया जा रहा है, जहां लोग पूजा के दौरान इकट्ठा हो रहे हैं। ब्लॉग पर दुर्गापूजा के पंडालों के बारे में सबसे अधिक चर्चा हो रही है। ब्लॉगर इन बातों को लेकर बहस कर रहे हैं कि शहर का कौन सा पंडाल सबसे अच्छा है।

केवल कोलकाता ही नहीं, बल्कि देश के अन्य हिस्सों और विदेशों में आयोजित हो रहे दुर्गापूजा को लेकर भी ब्लॉग की दुनिया में चर्चा हो रही है। ब्रिटेन, टोरंटो या फिर मॉन्ट्रियल में पूजा के माहौल के बारे में ब्लॉगर पोस्ट लिख रहे हैं।

‘कॉफी रिंग्स’, और ‘एवरीवेयर पैशन टूमेक ए डिफरेंस’ जैसे ब्लॉग दुर्गापूजा से संबंधित पोस्ट लिख रहे हैं। हाल ही में, कोलकाता में बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के पहुंचने पर भी ब्लॉग जगत में चर्चा हुई।

‘हिंदू ब्लॉग’ में पूजा से जुड़ी तमाम जानकारियां मौजूद हैं। कोलकाता के पूजा पंडालों और विभिन्न पूजा स्थलों की तस्वीरें भी ब्लॉग पर मौजूद हैं। ‘कोलकाटियंस डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम’ पर विभिन्न पूजा पंडालों की तस्वीरें मौजूद हैं।

दुर्गापूजा में कोलकाता के पूजा पंडालों का आनंद नहीं उठाने की शिकायत दूर करने में ये ब्लॉग सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

रंग ला रहा है स्तनपान अभियान

अनिल गुलाटी,04 अगस्त 2008, इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में रामकृष्णपुर ग्राम पंचायत में स्तन पान को बढ़ावा देने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है। रामकृष्णपुर में नवजात की सुरक्षा के लिए यह विशेष अभियान चलाया जा रहा है।

गांव में रेहाना बीबी नाम की एक महिला को स्तन पान अभियान का ब्रांड एम्बैसेडर नियुक्त किया गया है। दरअसल, गांव में नवजात के स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने के लिए यह कदम उठाया गया है। रेहाना के छह माह के बच्चे का वजन सामान्य से अधिक है। वे अपने बच्चों को छह माह तक स्तनपान करवाती आई हैं।

गांव की आंगनवाड़ी सेविका रोशनआरा बेगम स्तन पान को लेकर रेहाना का मार्गदर्शन कर रही है। रोशनआरा का प्रयास गांव में रंग ला रहा है। गांव की महिलाएं अब अपने नवजात को आवश्यक रूप से स्तनपान करा रही हैं।

रोशनआरा ने कहा कि स्तनपान को लेकर ग्रामीण महिलाओं को जागरूक बनाना कोई आसान काम नहीं था। उन्होंने कहा कि प्रारंभ में महिलाओं को इसके लिए जागरूक करना आसान नहीं था, लेकिन अब महिलाएं इसका महत्व समझ गई हैं।


एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना की महिला पर्यवेक्षक सुप्रिती दास ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में स्तनपान को लेकर कई प्रकार की गलत धारणाएं महिलाओं के दिमाग में घर बनाए हुए थीं। उन्होंने कहा कि आंगनवाड़ी सेविकाएं महिलाओं को इस संबंध में जागरूक बनाने का प्रयास कर रही हैं।

गौरतलब है कि बाल मृत्यु के पीछे स्तन पान नहीं कराना भी एक कारण है। रामकृष्णपुर ग्राम पंचायत में अब महिलाएं इस संबंध में जागरूक हो गई हैं। रेहाना अब महिलाओं को जागरूक बनाने के लिए कमर कस चुकी हैं। वे स्थानीय भाषा में महिलाओं को इस संबंध में जानकारी मुहैया करा रही है।

अगस्त के पहले सप्ताह को ‘विश्व स्तनपान सप्ताह’ के तौर मनाया जा रहा है, जिसके तहत स्तनपान के प्रति महिलाओं को जागरूक बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

रेल गाड़ियां बन रही हैं सामाजिक संचार का जरिया

- अनिल गुलाटी
हम में से ज्यादातर लोगों ने छुक-छुक गाड़ी यानी ट्रेन को यात्रा के लिए ही इस्तेमाल किया होगा। पर अब इसका इस्तेमाल सामाजिक मुद्दों को लोगों तक पहुंचाने के लिए भी किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि रेलगाड़ी के माध्यम से जानकारी प्रदान करना एक नई अवधारणा है पर इतना तो जरूर है कि पिछले वर्ष इसकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

गत वर्ष की आखिरी तिमाही में तीन 'इंफो-ट्रेन' को चलाया गया। दिलचस्प है कि ये तीनों रेलगाड़ियां अलग-अलग मुद्दों पर जानकारी देती हैं। वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य पर 11 डिब्बों वाले 'आजादी एक्सप्रेस' को चलाया गया। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों की जानकारी देने वाली वस्तुओं की प्रदर्शनी इस रेलगाड़ी में लगाई गई है। यह रेल देश भर के 70 स्टेशनों से होकर गुजरेगी।

वहीं इसी तरह की एक दूसरी ट्रेन 'साइंस एक्सप्रेस' अंतरिक्ष से जुड़ी जानकारी, ब्लैक होल, आकाशगंगा, जैवतकनीक की जानकारी उपलब्ध कराती है। इस रेलगाड़ी को भारत सरकार के रेल मंत्रालय, विज्ञान एवं तकनीक विभाग और 'विक्रम ए साराभाई कम्युनिटी साइंस सेंटर' के सम्मिलित प्रयास से चलाया जा रहा है।

रेलगाड़ी के माध्यम से एचआईवी एड्स की जानकारी देने के लिए भी कदम उठाया गया है। सरकार 'रेड रिबन एक्सप्रेस' नामक ट्रेन चला रही है जो इस विषय में जानकारी मुहैया कराती है। जानकारी उपलब्ध कराने के इस अनोखे तरीके से युवाओं में खासा जोश है। यह अपने आप में एक अनोखी प्रक्रिया है जिसमें कुछ सीखने के लिए आपको रेलवे स्टेशन का रुख करना पड़ता है और रेलगाड़ी के भीतर जाना पड़ता है। लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कई बार रेलवे स्टेशन पर इन रेलों के सामने विषय से संबंधित गतिविधियां भी आयोजित की जातीं हैं।