Sunday, January 2, 2011

शब्दों से अधिक शरीर की भाषा स्पष्ट होती है

 हममें से हर कोई अपनी भावना या विचार का इजहार करने के लिए किसी न किसी तरीके का इस्तेमाल करता है। यह आवश्यक नहीं है कि संवाद कायम करने के लिए हमेशा जुबान से बोले जाने वाले शब्दों का ही इस्तेमाल किया जाए। कभी-कभी शरीर की भाषा जुबान से अधिक स्पष्ट और ताकतवर होती है।

कई बार वक्ता अपनी बातों के साथ कई तरह की भाव-भंगिमाओं का इस्तेमाल करते हैं। यह वक्ता द्वारा बोली जाने वाली बातों को सकारात्मक या नकारात्मक तरीके से मदद करता है। इतना ही नहीं यह वक्ता के बारे में उन बातों को भी बताता है, जो वक्ता कहना नहीं चाहता है। मसलन उसकी सोच और विचार के बारे में जाने-अनजाने कई राज उगल देती हैं हमारी भाव-भंगिमाएं।

कई बार हम वाक्य को अधूरा छोड़कर उसे भाव भंगिमाओं या शरीर की भाषा के माध्यम से पूरा करते हैं, क्योंकि कई बार कुछ बातें बोलने में असुविधाजनक होती है। कई बार हम जुबान से बोले जाने वाले एक साधारण से वाक्य या शब्द को शारीरिक हाव-भाव से एक विशेष अर्थ भी देते हैं।

इसलिए शारीरिक हाव-भाव जैसे चेहरे की भंगिमा, हाथों का इशारा, देखने का तरीका या शारीरिक मुद्रा, आदि का संवाद में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। याद कीजिए कई बार हम सिर्फ मुस्कराकर, ऊंगली दिखाकर, हाथों से इशारा कर कितना कुछ कह जाते हैं।

हम अपनी मुद्राओं के माध्यम से हालांकि कुछ न कुछ तो कहते ही रहते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि हमारी मुद्राओं को देखने वाला व्यक्ति भी हमारी मुद्राओं के वही अर्थ समझे, जो हम वाकई कहना चाहते हैं। क्योंकि एक ही मुद्रा का अर्थ अलग-अलग समाज और संस्कृति में अलग लगाया जा सकता है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि हमारी मुद्राएं हमारे बारे में इतना कुछ कहती हैं कि कई बार हम यह महसूस भी नहीं कर सकते हैं। एक ही शब्द अलग-अलग भंगिमा के साथ कहे जाने पर कभी गंभीर तो कभी अपमानजनक तौर पर ली जा सकती है।

संप्रेषण विज्ञान पर काम करने वाले शोधार्थियों का मानना है कि हम जो कुछ भी कहते हैं उसके साथ यदि सही शारीरिक भाषा को भी जोड़ दिया जाए, तो हम उसके अर्थ का अधिक-से-अधिक सटीक संप्रेषण करने में सफल हो सकते हैं।

यहां कुछ शारीरिक भंगिमाओं और मुद्राओं और उनके अर्थ की एक सूची दी जा रही है, लेकिन अलग-अलग परिस्थितियों में इसके अर्थ बदल भी सकते हैं।

मुद्राएं (अर्थ)-

- आगे की ओर पसरा हुआ हाथ (याचना करना)
- मुखाकृति बनाना (धीरज की कमी या अधीर)
- कंधे घुमाना फिराना या उचकाना (विदा होना, अनभिज्ञता जाहिर करना)
- मेज पर उंगलियों से बजाना (बेचैनी)
- मुट्ठी भींचना और थरथराना (गुस्सा)
- आगे की ओर उठी और सामने दिखती हथेली (रूकिए और इंतजार कीजिए)
- अंगूठा ऊपर उठा हुआ (सफलता)
- अंगूठा गिरा हुआ (नुकसान)
- मुट्ठी बंद करना (डर)
- आंख मींचना (ऊबना)
- हाथ से किसी एक दिशा की ओर इशारा करना (जाने के लिए कहना)
- तेज ताली बजाना (स्वीकृति)
- धीरे से ताली बजाना (अस्वीकार, नापसंदगी)

आज के जमाने में जब हर आदमी के पास समय बहुत कम होता है, ये मुद्राएं संवाद में बहुत काम आ सकती हैं और संप्रेषण में बहुत कारगर हो सकती हैं। भाषण, प्रस्तुति आदि में इन मुद्राओं का इस्तेमाल कर हम किसी खास विचार, भाव का आसानी से संप्रेषण कर सकते हैं या आसानी से अपने पक्ष में माहौल बना सकते हैं।
- अनिल गुलाटी

1 comment:

  1. Nice. Body language is the strong communication tool. It is not only for time saving, but if you would like to convince someone, want favor,and specially for behavior change communication it is very strong tool.

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